दतिया । पर्यावरण संरक्षण की दिशा में पहल बहुत सराहनीय है। 'आओ जलाएं कंडों की होली' अभियान चार वर्ष से लगातार चला रही है। इसके बाद से लोगों में भी जागरूकता आई है। लोग अब होलिका दहन में वृक्षों को काटकर जलाने की बजाए कंडों का उपयोग अपनी परंपरा निभाने में करने लगे हैं। इस प्रयास से जहां जंगल सुरक्षित होंगे। वहीं गौपालकों की आय में बढ़ोत्तरी होगी। गाय के उपले और कंडों का वैसे ही धार्मिक कार्यों में काफी महत्व होता है। ऐसे में लोगों को होलिका दहन कंडों से करने की ओर प्रेरित करने का कदम काबिले तारीफ है। हम सब भी आओ जलाएं कंडों की होली अभियान का समर्थन करते हुए कंडों से ही होली जलाने की शपथ लेते हैं। यह संकल्प राजघाट तिराहा स्थित प्रधानमंत्री कौशल विकास केंद्र के सदस्यों ने गुरुवार को लेकर अभियान को आगे बढ़ाने की बात कही है। संकल्प लेने वालों में नरेंद्र सिंह, रोहित कुमार, योगेंद्र सिंह, सोहन लाल गुप्ता, केतन निकेतन, नीरज आदि शामिल हैं।
कंडों की होली जलाने से जहां पर्यावरण प्रदूषण रुकेगा वहीं वृक्ष अनावश्यक कटने से बच जाएंगे। यह प्रयास सभी वर्ग के लोगों के लिए प्रेरणादायक है। हम भी इसे लेकर आगे बढ़ेगें। - मयंक चौरसिया।
आओ जलाएं कंडों की होली अभियान हमारे शहर को नई दिशा में ले जाएगा। होली जलाने की परंपरा को निभाने में हम बेकार ही वृक्षों को हानि पहुंचा देते हैं। जब आसानी से कंडों के माध्यम से शुद्ध होलिका दहन हो सकता है तो फिर वृक्षों को क्यों काटा जाएं। युवा वर्ग इस पहल को लेकर उत्साहित है और इसका अनुसरण करेगा। - नंदनी पुरोहित।
कंडों से होली जलाने से जहां हमारे गोवंश को संरक्षण मिलेगा। वहीं गाय के गोबर का उपयोग बढ़ जाने से गौपालन की ओर लोगों का रूझान बढ़ेगा और गौपालकों की आय में वृद्धि होगी। होली में कंडों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल वातावरण को भी शुद्धता प्रदान करेगा। - शिप्रा पोरवाल।
होली का त्योहार हर वर्ग को अपनी ओर आकर्षित करता है। रंग अबीर की छटा में लोग सभी भेदभाव भुलाकर आपस में मिलते हैं। इस त्योहार में वृक्षों को हानि पहुंचाने वाली आदत में बदलाव लाकर कंडों की होली जलाने की पहल एक क्रांतिकारी कदम है। जिसे सभी लोगों को अपनाना चाहिए। - आशियाना बानो।